Bihar Board 12th Hindi 5 Marks Subjective Model Set 3
Bihar Board Exam 2023 Model Set For 2023 Exam

Bihar Board 12th Hindi 5 Marks Subjective Model Set 3 – महत्वपूर्ण मॉडल सेट

Bihar Board 12th Hindi 5 Marks Subjective Model Set 3 – महत्वपूर्ण मॉडल सेट

निम्न प्रश्नों में से किन्हीं पाँच के उत्तर 150-250 शब्दों में दें        3Q×5-15

Bihar Board 12th Hindi 5 Marks Subjective Model Set 3 – महत्वपूर्ण मॉडल सेट

(1) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के काव्य-आदर्श क्या थे, पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर- डॉ. नामवर सिंह के प्रगीत और समाज’ शीर्षक निबंध के अनुसार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के काव्य का आदर्श प्रबंधकाव्य थे, क्योंकि प्रबन्धकाव्य में मानव जीवन का एक पूर्ण दृश्य होता है। प्रबन्धकाव्य जीवन के सम्पूर्ण पक्ष को प्रकाशित करता है। आचार्य शुक्ल को भी उन्हें इसलिए परिसीमित लगा क्योंकि वह गीतिकाव्य है। आधुनिक कविता से उन्हें शिकायत भी थी,

इसका कारण था” कला कला” की पुकार, जिसके फलस्वरूप यूरोप में प्रगीत- मुक्तकों (लिरिक्स) का ही चलन अधिक देखकर यह कहा जाने लगा कि अब यहाँ भी उसी का जमाना आ गया है। इस तर्क के पक्ष में यह कहा जाने लगा कि अब ऐसी लंबी कविताएँ पढ़ने की किसी को फुरसत कहाँ है जिनमें कुछ इतिवृत्त भी मिला रहता हो। ऐसी धारणा बन गई कि अब तो विशुद्ध काव्य की सामग्री जुटाकर सामने रख देनी चाहिए जो छोटे-छोटे प्रगीत मुक्तकों में ही संभव है।

इस प्रकार काव्य में जीवन को अनेक परिस्थितियों की ओर ले जाने वाले प्रसंगों या आख्यानों की उद्भावना बन्द सी हो गई यहाँ कारण था कि ज्यों ही प्रसाद की “कामायनी’ ” शेरसिंह का शस्त्र समर्पण”, “पेसोला की प्रतिध्वनि “”प्रलय की छाया तथा निराला को “राम की शक्तिपूजा” तथा “तुलसीदास” जैसे आख्यानक काव्य सामने आए तो आचार्य शुक्ल ने संतोष व्यक्त किया।

(ii) शिक्षा का क्या अर्थ है ? जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं हो सकती। क्यों ?

उत्तर-शिक्षा का अर्थ जीवन के सत्य से परिचित होना और संपूर्ण जीवन की प्रक्रिया को समझने में हमारी मदद करना है। क्योंकि जीवन विलक्षण है. ये पक्षी, ये ये वैभवशाली वृक्ष फूल. ये आसमान, ये सितारे, ये मत्स्य सब हमारा जीवन है। जीवन दीन है, जीवन अमीर भी जीवन गूढ़ है, जीवन मन की प्रच्छन्न वस्तुएँ ईष्याएँ, महत्त्वाकांक्षाएँ, वासनाएँ, भय, सफलताएँ एवं चिंताएँ हैं। केवल इतना ही नहीं अपितु इससे कहीं ज्यादा जीवन है। हम कुछ परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर लेते हैं,

हम विवाह कर लेते हैं. बच्चे पैदा कर लेते हैं और इस प्रकार अधिकाधिक यंत्रवत बन जाते हैं। हम सदैव जीवन से भयाकुल, चिंतित और भयभीत बने रहते हैं। शिक्षा इन सबों का निराकरण करती है। भय के कारण मेधा शक्ति कुठित हो जाती है। शिक्षा इसे दूर करता है। शिक्षा समाज के ढाँचे के अनुकूल बनने में आपकी सहायता करती है या आपको पूर्ण स्वतंत्रता होती है। वह सामाजिक समस्याओं का निराकरण करे शिक्षा का यही कार्य है।

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हम जानते हैं कि बचपन से ही हमारे लिए ऐसे वातावरण में रहना अत्यंत आवश्यक है जो स्वतंत्रतापूर्ण हो। हममें से अधिकांश व्यक्ति ज्यों-ज्यों बड़े होते जाते हैं, त्यों-त्यों ज्यादा भयभीत होते जाते हैं, हम जीवन से भयभीत रहते हैं, नौकरी के छूटने से, परंपराओं से और इस बात से भयभीत रहते हैं कि पड़ोसी या पत्नी या पति क्या कहेंगे, हम मृत्यु से भयभीत रहते हैं। हममें से अधिकांश व्यक्ति किसी न किसी रू प में भयभीत है और जहाँ भय है

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वहाँ मेधा नहीं है। निस्संदेह यह मेधा शक्ति भय के कारण दब जाती है। मेधा शक्ति वह शक्ति है जिससे आप भय और सिद्धांतों की अनुपस्थिति में स्वतंत्रता के साथ सोचते हैं ताकि आप अपने लिए सत्य की वास्तविकता की खोज कर सकें। यदि आप भयभीत हैं तो फिर आप कभी मेधावी नहीं हो सकेंगे। क्योंकि भय मनुष्य को किसी कार्य को करने से रोकता है। वह महत्त्वाकांक्षा फिर चाहे आध्यात्मिक हो या सांसारिक, चिंता और भय को जन्म देती है।

अतः यह ऐसे मन का निर्माण करने में सहायता नहीं कर सकती जो सुस्पष्ट हो. सरल हो, सीधा हो और दूसरे शब्दों में मेधावी हो।

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(iii) ‘बातचीत’ शीर्षक निबंध का सारांश लिखें।

उत्तर-  बालकृष्ण भट्ट आधुनिक हिन्दी गद्य के आदि निर्माताओं और उन्नायक रचनाकारों में एक है। बालकृष्ण भट्ट बातचीत निबंध के माध्यम से मनुष्य से मनुष्य को ईश्वर द्वारा दी गई अनमोल वस्तु वाक्शक्ति का सही इस्तेमाल करने को बताते हैं। वे बताते हैं कि यदि वाक्शक्ति मनुष्य में न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूँगी सृष्टि का क्या हाल होता। सबलोग मानो लुजमुज अवस्था में कोने में बैठा दिए गए होते। बातचीत के विभिन्न तरीके भी बताते हैं।

यथा घरेलू बातचीत मन रमाने का ढंग है। वे बताते हैं कि जहाँ आदमी की अपनी जिंदगी मजेदार बनाने के लिए खाने पीने, चलने-फिरने आदि की जरूरत है, वहाँ बातचीत की भी अत्यन्त आवश्यकता है। जो कुछ मवाद या धुआँ जमा रहता है। वह बातचीत के जरिए भाप बनकर बाहर निकल पड़ता है। इससे हल्का और स्वच्छ हो परम आनंद में मग्न हो जाता है। बातचीत का भी एक खास तरह का मजा होता है। यही नहीं वे बताते हैं कि मनुष्य बोलता नहीं तबतक उसका गुण तो नहीं प्रकट होता है।

न जानसन का कहना है कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार हो जाता है। यूरोप के लोगों में बातचीत का हुनर है जिसे आर्ट ऑफ कनवरसेशन कहते हैं। इस प्रसंग में ऐसे चतुराई प्रसंग छोड़े जाते हैं कि जिन्हें कान को सुने अत्यंत सुख मिलता है। हिन्दी में इसका नाम सुहृद गोष्ठी है। बालकृष्ण भट्ट बातचीत का उत्तम तरीका यह मानते हैं कि हम वह शक्ति पैदा करें कि अपने आप बात कर लिया करें। बातचीत में भाव अर्थपूर्ण रूप से उजागर करना चाहिए।

(iv) कवि ‘जायसी’ ने किस रूप में स्वयं को याद रखे जाने की इच्छा व्यक्त की है? उनकी इस इच्छा का मर्म बताएँ।

उत्तर- कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी स्मृति के रक्षार्थ जो इच्छा प्रकट की है, उसका वर्णन अपनी कविताओं में किया है। कवि का कहना है कि मैंने जान-बूझकर संगीतमय काव्य की रचना की है ताकि इस प्रबंध के रूप में संसार में मेरी स्मृति बरकरार रहे। इस काव्य-कृति में वर्णित प्रगाढ प्रेम सर्वथा नयनों की अवधारा से सिंचित है यानि कठिन विरह प्रधान काव्य है।

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दूसरे शब्दों में जायसी ने उस कारण का उल्लेख किया है जिससे प्रेरित होकर उन्होंने लौकिक कथा का आध्यात्मिक विरह और कठोर सूफी साधना के सिद्धान्तों से परिपुष्ट किया है। इसका कारण उनकी लोकषणा है। उनकी हार्दिक इच्छा है कि संसार में उनकी मृत्यु के बाद उनकी कीर्ति नष्ट न हो। अगर वह केवल लौकिक कथा मात्र लिखते तो उससे उनकी कीर्ति चिर स्थायी नहीं होती। अपनी कोर्त्ति चिर स्थायी करने के लिए ही उन्होंने पद्मावती की लौकिक कथा को सूफी साधना का अध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर प्रतिष्ठित किया है। लोकषणा भी मनुष्य की सबसे प्रमुख वृत्ति है।

(v) ‘हार-जीत’ शीर्षक कविता का सारांश लिखें।

उत्तर- हार-जीत अशोक वाजपेयी समसामयिक कवि है। उनकी हार-जीत एक गद्य कविता है। इस कविता को विशेषता यह है कि इस कविता में दिनोंदिन जीवन अनुभवों की धरती से बोलचाल बात-चीत और सामान्य मनः चिंतन के रूप में उगा हुआ होता है। कवि युद्ध की स्थिति से क्षुब्ध हैं। वह शासकों के क्रिया-कलाप से असंतुष्ट है। वह युद्ध के विषय में हार-जीत पर प्रश्न खड़ा करता है कि आखिर इस युद्ध में हार-जीत किसकी होती है।

Bihar Board 12th Hindi 3 Marks Subjective Model Set 2 – महत्वपूर्ण मॉडल सेट

कवि कहते हैं कि शासक लोग उत्सव मना रहे हैं। सारे शहर को सजाया जा रहा है। शासकों ने जनता को बता रखा है कि उनकी सेना विजय करके लौटी है। कवि यह बताते हैं कि नागरिकों से ज्यादातर लोगों में किसी को पता नहीं है कि किस युद्ध में उनकी सेना गये थे। यह विजय पर्व किसलिए है। शासक धोखेबाज हैं। कवि शासक की धूर्तता उसकी राजनीति को पोल खोलता है। क्योंकि शासक युद्ध में जितने सेना शहीद होता है

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उसकी सूची इसलिए प्रकाशित नहीं करता है कि जनता बौखला जाएगी। शासकों के आने के कारण सड़कों को गीला किया जा रहा है क्योंकि उन पर कहीं धूल नहीं पड़ जाए। शासक गाजे-बाजे के साथ अपना प्रभुत्व के लिए दिखावा कर रहे हैं। बूढ़ा मशक वाला के माध्यम से कवि यह कहलवाता है कि युद्ध हार-जीत की नहीं होती बल्कि विनाश ही करती है। जनता को सिर्फ काम में लगाया जाता है। उसे सच कहने की इजाजत नहीं है। वह कविता रघुवीर सहाय के अधिनायक से मेल खाती है।

(vi) ‘प्यारे नन्हें बेटे को शीर्षक कविता का सारांश लिखें।

उत्तर- प्यारे नन्हें बेटे को विनोद कुमार शुक्ल समकालीन कवि हैं। उनकी कविताएँ अनुभव की सच्चाई व्यक्त करती हैं विनोद कुमार शुक्ल की कविता ‘प्यारे नन्हें बेटे को वार्तालाप शैली में लिखी गयी है। इस कविता में कवि कहता है लोहा कर्म का प्रतीक है। इसे हर वस्तु में तलाशना होगा। वह प्यारी बिटिया से पूछता है कि बताओ आसपास कहाँ-कहाँ लोहा है चिमटा करकल, सिगड़ी समसी, दरवाजे की साँकल, कब्जे में ब्रिटिश बताती है। रूक-रूककर फिर याद कर बताती है

लकड़ी दो खंभों पर वह तार एक सैफ्टी पिन पूरी साइकिल में लोहा कवि को लोहा के प्रतीक आग्रह इतना क्यों? कवि बताता है कि लोहा कर्म का प्रतीत है। वह जहाँ भी रहता है अपनी मजबूती के साथ रहता है। उसका शोषण कोई नहीं कर सकता। कवि पुत्री को याद दिलाता है कि फावड़ा कुदाली, हँसिया, चाकू, खुरपी, बसुला सभी में लोहा है। कवि को पुत्री के अलावे भी याद दिलाती है कि बाल्टी सामने कुएं में लगी लोहे की घिरी छात्ते की डंडी में लोहा है

वह समाज की निम्न वर्ग के मजदूर को समाज का लोहा मानता है जिसके बल पर समाज मजबूती से खड़ा है परन्तु वह मजदूर शोषित है। लोहा कदम-कदम पर और एक गृहस्थी में सर्वव्याप्तः है । यह लोहा दुर्भेध प्रतीकार्थ देता है। ठोस होकर भी जिंदगी और संबंधी में घुला मिला हुआ और प्रवाहित है। वह हमारा आधार है।

संक्षेपण करें:

नकली माल बेचना, खरीदना वस्तुओं में मिलावट करते जाना.. धर्म का नाम ले-लेकर अधर्म का आश्रय ग्रहण करना, कुर्सीवाद का समर्थन करते हुए इस दल से उस दल में आना जाना, दोषी और अपराधी तत्त्वों को घूस लेकर छोड़ देना और रिश्वत लेने के लिए निरपराधी तत्त्वों को गिरफ्तार करना, किसी पद के लिए एक निश्चित सीमा का निर्धारण करके रिश्वत लेना, पैसे के मोह और आकर्षण के कारण हत्या, अपहरण, लूट-पाट, चोरी, कालाबाजारी, तस्करी आदि सब कुछ भ्रष्टाचार के मुख्य कारण हैं।

उत्तर:  शीर्षक भ्रष्टाचार आज चारों और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। चाहे वह नेता, पुलिसवाले या बड़े बाबू क्यों न हो।

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