Bihar Board 12th Hindi 5 Marks Subjective Model Set
(i) ‘उत्सव’ का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- उत्सव का अर्थ खुशियाँ मनाना होता है, जब देश या समाज में अच्छा काम होता है तो यहाँ सभी घरों में उत्सव मनाया जाता है परन्तु हमारे पाठ्यपुस्तक में कवि ने राजनीतिक झुठ को दिखाया है। यहाँ शासक एवं सत्ताधारी वर्ग अपनी हार की घोषणा नहीं करता। यह अपनी हार को भी विजय के रूप में प्रस्तुत करता है और अपनी प्रजा को भ्रम में रखता है। प्रजा तो समझती है कि शासक की जीत हुई है। पर वास्तविकता दूसरी होती है। शासक अपनी हार को जश्न के माध्यम से प्रजा तक जीत के रूप में प्रस्तुत करता है और उसे यह स्वीकार करने पर मजबूर करता है कि वह बलवान और समर्थ है, उसकी कभी पराजय नहीं हो सकती।
(ii) सड़कों को क्यों सींचा जा रहा है ?
उत्तर- विजय पर्व मनाने के लिए सड़कों को सींचा जा रहा है। विजयी
सेना उन्हीं सड़कों से आने वाली है। विजय सेना को सड़कों की गर्द और धूल का सामना न करना पड़े, अतः सड़कों को सींचा जा रहा (iii) ‘कड़बक’ के कवि की सोच क्या है ? उत्तर-कड़बक के कवि पायसी विनम्र स्वभाव के साथ अपनी रूपहीनता और एक आँख के अंधेपन को प्राकृतिक दृष्टांतों द्वारा महिमान्वित करते हैं कि हमारा ध्यान रूप पर नहीं गुणों पर होना चाहिए। कवि कहते हैं कि जायसी एक आँख का है लेकिन वह गुणी है। जिस किसी ने कवि की रचना सुनी, वही विमुग्ध हो गया। विधाता उसे चाँद के समान सृष्टिकर इस धरती पर भेजा है।
(iv) ‘गाँव का घर’ कविता में कवि किस घर की बात कर रहे हैं ?
उत्तर- गाँव का घर कविता में कवि अपनी कविता के माध्यम से कवि उन स्मृतियों को खोजा है। बचपन में गाँव का घर घर की परम्परा ग्रामीण शैली तथा उसके विविध रंग, इन सब तथ्यों को यूक्ति संगत ढंग से इस कविता में दर्शाया गया है। वस्तुतः स्मृतियों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। स्मृतियों द्वारा हम आत्म निरीक्षण करते हैं। इसके द्वारा हमें अपने जीवन की कतिपय विसंगतियों से स्वयं को मुक्त करने का अवसर मिलता है।
(v) बोधा सिंह कौन है ?
उत्तर-बोधा सिंह ‘उसने कहा था’ शीर्षक कहानी के सूबेदार हजारा
सिंह का पुत्र है।
(vi) गंगा पर पुल बनाने में अंग्रेजी ने क्यों दिलचस्पी नहीं ली ?
उत्तर- गंगा पर पुल बनाने में अँगरेजों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। वे जानते थे कि गंगा पर पुल बन जाता है तो दक्षिण बिहार में उदित हो रहे विद्रोही विचारों का असर पड़ना तुरंत शुरू हो जाएगा और उन्हें तब बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। दक्षिण बिहार में अँगरेजों के अत्याचारों के विरोध में मुंडा जाति सक्रिय हो गई थी और अँगरेजों को उनसे डर होने लगा था। देशभक्त बिरसा मुंडा ने सैन्यदल का संगठन किया था और अपने छापामार युद्ध से अँगरेजों को परेशान कर रखा था।
(vii) मानक और सिपाही एक-दूसरे को क्यों मारना चाहते हैं?
उत्तर- बर्मा के युद्ध में मानक ने युद्धधर्म का पालन करते हुए सिपाही पर गोलियाँ चलाई हैं और सिपाही ने भी मानक पर गोलियाँ बरसाई है। दोनों घायल हैं। घायल मानक भागकर घर आता है और अपनी माँ की गोद में छिप जाता है। घायल सिपाही अपने दुश्मन मानक को मारने के लिए उसके घर तक आ जाता है। मानक को लगता है कि सिपाही उसे मारकर उसकी माँ और बहन का एकमात्र सहारा खत्म कर देना चाहता है और सिपाही को लगता है कि वह उसे मारकर उसकी माँ बीवी और गर्भस्थ शिशु को समाप्त कर देना चाहता है। दोनों एक-दूसरे को मारकर अपने लिए सुरक्षा की व्यवस्था करना चाहते हैं। सिपाही जानता है कि यदि वह मानक को नहीं मारेगा, तो मानक उसे मार डालेगा और मानक जानता है कि यदि वह सिपाही को नहीं मारेगा, तो वह उसे मार डालेगा। सुरक्षा का भय एक-दूसरे को जान का दुश्मन बना देता है। मानक और
सिपाही एक-दूसरे की जान लेने पर उतारू हो जाते हैं।
(viii) महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस का नाम किस पाठ में आया है ?
उत्तर- महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस का नाम
‘सम्पूर्ण क्रांति’ पाठ में आया है।
(ix) डायरी क्या है ? डायरी क्यों लिखनी चाहिए?
उत्तर-डायरी दैनिक वृत्त की पुस्तक है, इसे दैनंदिनी भी कहा जाता
है। इसमें जीवन के प्रतिदिन की घटनाओं व अनुभवों का वर्णन होता है। किसी व्यक्ति की डायरी से उसके मन के भाव, उसके जीवन के लक्ष्य, जीवन की स्थितियाँ परिलक्षित होती हैं। डायरी किसी के जीवन का दर्पण है। इसीलिए डायरी अवश्य लिखनी चाहिए।
(x) पंच परमेश्वर के खो जाने पर कवि चिंतित क्यों है?
उत्तर- “पंच परमेश्वर” का अर्थ है-‘पंच’ परमेश्वर का रूप होता है। वस्तुतः पंच के पद पर विराजमान व्यक्ति अपने दायित्व निर्वाह के प्रति पूर्ण सचेष्ट एवं सतर्क रहता है। वह निष्पक्ष न्याय करता है। उन पर सम्बन्धित व्यक्तियों की पूर्ण आस्था रहती है तथा उसका निर्णय “देव-वाक्य” होता है।
कवि यह देखकर खिन्न है कि आधुनिक पंचायती राज व्यवस्था में पंच परमेश्वर की सार्थकता विलुप्त हो गई। एक प्रकार से अन्याय और अनैतिकता ने व्यवस्था को निष्क्रिय कर दिया है, पंगु बना दिया है। पंच परमेश्वर शब्द अपनी सार्थकता खो चुका है। कवि इन्हीं कारणों से
चिन्तित है।
निम्न प्रश्नों में से किन्हीं पाँच के उत्तर 150-250 शब्दों में वें
(1) ‘पेशगी’ कहानी का सारांश लिखें।
उत्तर- प्रस्तुत हेनरी लोपेज द्वारा लिखित कहानी “पेशगी” में
तथाकथित सभ्य समाज द्वारा शोषण एवं उत्पीड़न का अत्यन्त स्वाभाविक एवं संवेदनशील चित्रण है। संपन्नता तथा विपन्नता के बीच का विस्तृत खाई की सफल प्रस्तुति है। प्रस्तुत कहानी ‘पेशगी’, कितना अन्तर है मालकिन तथा उसकी छाया के पारिवारिक जीवन में वस्तुतः यह समाज में व्याप्त असमानता की ओर संकेत करता है।
कहानी ‘पेशगी’ अफ्रीकी देश कांगों के मिपला नामक स्थान से प्रारम्भ होती है तथा वहाँ के एक संभ्रान्त गैर फ्रांसीसी परिवार से इसका संबंध है। उस परिवार में कारमेन नामक एक अफ्रीकी मूल की नौकरानी काम करती है। उस बंगले का चौकीदार फार्डिनाँक नामक वयोवृद्ध व्यक्ति है। मालकिन को इस पूरी कहानी में “मैडम” कहकर संबोधित किया गया है। अतः मैडम उसके नाम का पर्याय हो गया है। मालकिन की एक नन्हीं सी पुत्री “फ्रैंक्वा” है जो अपनी माँ के दुलार में कुछ जिद्दी एवं चिड़चिड़ी हो गई है। कारमेन उसको बहुत प्यार करती है तथा उसे हमेशा खुश देखना चाहती है। दिन भर उसकी छोटी लड़की फ्रैक्या की देखभाल में कारमेन का समय बीतता है। इसके अतिरिक्त उस बंगले के अन्य कार्य भी उसे करने पड़ते हैं। फ्रैंक्वा अक्सर मचल जाती है, किसी बात पर अड़ जाती है। उस समय नौकरानी कभी-कभी डाँटकर तथा कभी स्नेह तथा ममतापूर्ण शब्दों से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए समझाती हैं क्योंकि बच्ची के प्रति उसका वात्सल्य उमड़ पता है। अपने हेक्टर के समान ही वह फ्रैंक्वा को मानती थी। कारमेन को अपने गाँव माकेलेकल बंगले पर पहुँचाने में एक घंटा से अधिक समय लग जाता था लेकिन जब तक फ्रैंक्वा सो नहीं जाती थी तब उसे लोरी सुनाकर घुमाती रहती थी। चाहे रात अधिक भी बीत जाए अपने घर लौटने में मालकिन
कभी-कभी नाराज होकर कुछ कटु शब्द बोल दिया करती थी।
(ii) ‘ओ सदानीरा का सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर- ‘ओ सवानीरा’ चंपारण का विस्तृत भूभाग जो बिहार के उत्तर-पश्चिम कोण पर स्थित है, गौरवशाली गाथा का इतिहास अपने अन्तर में समेटे हुए हैं। इसका कुछ भूभाग प्राचीन पौराणिक कथाओं का केन्द्र है तो कुछ भाग आधुनिक महत्वपूर्ण स्थलों की कर्मभूमि हिमालय की तराई में अवस्थित जंगलों से अवगुण्ठित यह रमणीक स्थल दर्शनीय है एवं महत्वपूर्ण भी यह पलास, साल एवं अन्य वृक्षों की छाया में, लाज से सिकुड़ी सिमटी नदियों से अपनी तृष्णा की तृप्ति कर रहा है।
मानव-मन की क्रूरता ने इसकी सुषमा शोषण किया है। लेखक इस क्षेत्र के वृक्षों के अंधाधुंध कटाई से क्षुब्ध है। वन नंगे हो गए हैं। विकास की दौड़ एवं भूमि के अपहरण (भवन निर्माण) तथा ट्रैक्टर की जुताई द्वारा सरससलिता नदियों को श्रीहीनकर दिया है। चंपारण की पावन भूमि कभी गौतम बुद्ध की कर्मस्थली और भगवान वर्तमान महावीर की जन्मस्थली रही है। कालान्तर में बाहर से अनेक आक्रमणकारी तथा अन्य प्रदेशों से अनेक जातियाँ आई और बस गई। विभिन्न संस्कृति का यह संगम स्थल भी है। निलई गोरों (साहब) द्वारा शोषण का यह गवाह भी है। महात्मा गाँधी के पावन चरण यहाँ पड़े थे। उनके द्वारा यहाँ के जनसमुदाय को उत्पीड़न से मुक्ति मिली थी। गाँधीजी द्वारा स्थापित बड़हरवा, मधुबनी और मितिहरवा आश्रम वहाँ के जन जीवन को नवजीवन दिया है। अनेकों बौद्धों एवं जैन तीर्थस्थल, स्तूपों एवं स्मारकों, स्तम्भों से चंपारण का चप्पा-चप्पा भरा हुआ है। सम्राट अशोक का लौरिया नन्दन गढ़ का सिंह स्तम्भ अपने शिलालेख द्वारा उस समय की शासन व्यवस्था का दस्तावेज है। पतित पावनी गंडक नदी चंपारण की भूमि को अपने स्पर्श से पवित्र
करती रही है। हिमालय की तराई (पौराणिक स्थल में लोटन के निकट) से चलकर सोनपुर के हरिहर क्षेत्र तक गंडक किनारे पर अनेक तीर्थों के अवशेष एवं समाधियाँ बिखरी पड़ी हैं। भैसालोटन किंवदन्ती है कि भैसालोटन के निकट ही गंडक नदी गंडक-गंगा के संगम पर हरिहर क्षेत्र में समाप्त हो गया। भैसालोटन के निकट बाल्मीकिनगर में रामायण के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है। अब यही भैसालोटन (चंपारण का उत्तरी भाग) जंगल के बीच नवीन जीवन केन्द्र के निर्माण का आधुनिक तीर्थस्थल बन गया है। भारतीय इंजीनियर गंडक घाटी योजना के अन्तर्गत एक सौ बीस मील लम्बी पश्चिम नहर तथा 55 मील लम्बी पूर्वी नहर के निर्माण कार्य में संलग्न हैं। वहीं (भैसालोटन) लगभग 3000 फुट लम्बा बराज बन रहा है जिसके ऊपर रेल एवं सड़क संभावित है। कुल 41.49 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई इन नहरों द्वारा होगी।
लेखक गंडक घाटी योजना द्वारा निर्मित नहर तथा बराज के गर्भ में विकास की अलौकिक किरण का दर्शन कर रही है। नहरों में उसे नारायण की भुजाओं के दर्शन हो रहे हैं और उस गज और ग्राह के युद्ध का यहाँ पर अंत होता अनुभव हो रहा है। (इसी स्थान पर गज और ग्राह की लड़ाई शुरू हुई थी)। नहरों तथा बराज के अभूतपूर्व निर्माण जिसे लेखक भगवान का नृत्य विराट रूप कहता है-इंजीनियरों, विश्वकर्मियों तथा मजदूरों को नमन (नमस्कार) करता है। नए तीर्थ स्थल मूर्तियों एवं भग्न मंदिरों में प्राण का संचार करेंगे अर्थात् इन नहरों तथा बराज के जल लाखों
एकड़ जमीन का सिंचन कर उसे उर्वरा एवं शस्य श्यामला बना देगा। अंत में लेखक परम पावनी गंडक की ओर सदानीरा ओ चक्रा ओ नारायणी। ओ नत गंडक आदि अनेक नामों से संबोधित करते हुए कहता है कि दीन-हीन जनता इन नामों से तो गुणगान करती रही हैं किन्तु तेरी निरंतर चंचल धारा ने सदा उनके पुष्पों एवं तीर्थों को ठुकरा दिया अर्थात् बाढ़ उन्हें संत्रस्त करती रही, उनके भवनों एवं संपत्ति को नष्ट करती रही। किन्तु आज तेरे पूजन के लिए जिस मंदिर की प्रतिष्ठा हो रही है उसकी नींव बहुत गहरी है, नष्ट नहीं हो पाएगी। अर्थात् गंडक के ऊपर जो बराज और नहर बनी है उसकी नींव की दीवार बहुत गहरा तथा मजबूत है। गंडक नदी की तीव्र प्रवाह भी उसे तोड़ नहीं सकता।
(iii) ‘रोज’ कहानी का सारांश लिखें। अथवा ‘रोज’ शीर्षक कहानी के आधार पर मालती का चरित्र चित्रण करें।
उत्तर- कहानी के पहले भाग में मालती द्वारा अपने भाई के औपचारिक स्वागत का उल्लेख है जिसमें कोई उत्साह नहीं है, बल्कि कर्त्तव्यपालन की औपचारिकता अधिक है। वह अतिथि का कुशलक्षेम तक नहीं पूछती, पर पंखा अवश्य झलती है। उसके प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर देती है। बचपन की बातूनी चंचल लड़की शादी के दो वर्षों बाद इतनी बदल जाती है कि वह चुप रहने लगती है। उसका व्यक्तित्व बुझ सा गया है। अतिथि का आना उस घर के ऊपर कोई काली छाया मंडराती हुई लगती है।
मालती और अतिथि के बीच के मौन को मालती का बच्चा सोते सोते रोने से तोड़ता है। वह बच्चे को संभालने के कर्तव्य का पालन करने के लिए दूसरे कमरे में चली जाती है। अतिथि एक तीखा प्रश्न पूछता है तो उसका उत्तर वह एक प्रश्नवाचक से देती है। मानो उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं है। यह आचरण उसकी उदासी, ऊबाहट और यात्रिक जीवन की यंत्रणा को प्रकट करता है। दो वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद
नारी कितनी बदल जाती है, यह कहानी के इस भाग में प्रकट हो जाती है। कहानी के इस भाग में मालती कर्तव्यपालन की औपचारिकता पूरी करती प्रतीत होती है पर उस कर्तव्यपालन में कोई उत्साह नहीं है, जिससे उसके नीरस, उदास, यांत्रिक जीवन की ओर संकेत करता है। अतिथि से हुए उसके संवादों में भी एक उत्साहहीनता और ठंढापन है। उसका व्यवहार उसकी द्वन्द्वग्रस्त मनोदशा का सूचक है। इस प्रकार कहानीकार बाह्य स्थिति और मनःस्थिति के सश्लिष्ट अंकन में सफल हुआ है।
रोज कहानी के दूसरे भाग में मालती का अंतर्द्वन्द्वग्रस्त मानसिक स्थिति बीते बचपन की स्मृतियों में खोने से एक असंज्ञा की स्थिति, शारीरिक जड़ता और थकान का कुशल अंकन हुआ है। साथ ही उसके पति के यांत्रिक जीवन, पानी, सब्जी, नौकर आदि के अभावों का भी उल्लेख हुआ है। मालती पति के खाने के बाद दोपहर को तीन बजे और रात को दस बजे ही भोजन करेगी और यह रोज का क्रम है। बच्चे का रोना, मालती का देर से भोजन करना, पानी का नियमित रूप से वक्त पर न आना, पति का सबेरे डिस्पेन्सरी जाकर दोपहर को लौटना और शाम को फिर डिस्पेन्सरी में रोगियों को देखना यह सब कुछ मालती के जीवन की सूचना देता है अथवा यह बताता है कि समय काटना उसके लिए कठिन हो रहा है।
इस भाग में मालती, महेश्वर अतिथि के बहुत कम क्रियाकलापों और अत्यंत सक्षिप्त संवादों के अंकन से पात्रों की बदलती मानसिक स्थितियों को प्रस्तुत किया गया है, जिससे यही लगता है कि लेखक का ध्यान बाह्य दृश्य के बजाय अंतर्दृश्य पर अधिक है। कहानी के तीसरे भाग में महेश्वर की यांत्रिक दिनचर्या, अस्पताल के एक जैसे ढरे, रोगियों की टांग काटने या उसके मरने के नित्य चिकित्सा कर्म का पता चलता है, पर अज्ञेय का ध्यान मालती के जीवन संघर्ष को चित्रित करने पर केंद्रित है।
महेश्वर और अतिथि बाहर पलंग पर बैठ कर गपशप करते रहे और चाँदनी रात का आनन्द लेते रहे, पर मालती घर के अंदर बर्तन मांजती रही, क्योंकि यही उसकी नियति थो।
बच्चे का बार-बार पलंग से नीचे गिर पड़ना और उस पर मालती की चिड़चिड़ी प्रतिक्रिया मानो पूछती है वह बच्चे को सभाले या बर्तन मले ? यह काम नारी को ही क्यों करना पड़ता है? क्या यही उसकी नियति है ? इस अचानक प्रकट होने वाली जीवनेच्छा के बावजूद कहानी का मुख्य स्वर चुनौती के बजाय समझौते का और मालती की सहनशीलता का है। इसमें नारी जीवन की विषम स्थितियों का कुशल अंकन हुआ है। बच्चे की चोटें भी मामूली बात है, क्योंकि उसे चोट रोज लगती रहती है। मालती के मन पर लगने वाली चोट भी चिन्ता का विषय नहीं है, क्योंकि वह रोज इन चोटों को सहती रहती है। ‘रोज’ की ध्वनि कहानी में निरन्तर गूंजती रहती है।
कहानी का अंत ‘ग्यारह बजने की घंटा-ध्वनि से होता है और तब मालती करुण स्वर में कहती है “ग्यारह बज गए”। उसका घंटा गितना उसके जीवन की निराशा और करुण स्थिति को प्रकट करता है। कहानी एक रोचक मोड़ पर वहाँ पहुँचती है, जहाँ महेश्वर अपनी पत्नी को आम धोकर लाने का आदेश देता है। आम एक अखबार के टुकड़े में लिपटे हैं। जब वह अखबार का टुकड़ा देखती है, तो उसे पढ़ने में तल्लीन हो जाती है। उसके घर में अखबार का भी अभाव है। वह अखबार के लिए भी तरसती है। इसलिए अखबार का टुकड़ा हाथ में आने पर वह उसे पढ़ने में तल्लीन हो जाती है। यह इस बात का सूचक है कि अपनी सीमित दुनिया से बाहर निकल कर वह उसके आस-पास की व्यापक दुनिया से जुड़ना चाहती है। जीवन की जड़ता के बीच भी उसमें कुछ जिज्ञासा बनी है, जो उसकी जिजीविषा की सूचक है। मालती की जिजीविषा के लक्षण कहानी में यदा-कदा प्रकट होते हैं, पर कहानी का मुख्य स्वर चुनौती का नहीं है, बल्कि समझौते और परिस्थितियों के प्रति सहनशीलता का है जो उसके मूल में उसकी पति के प्रति निष्ठा और कर्त्तव्यपरायणता को अभिव्यक्त करता है। वह भी परंपरागत सोच की शिकार है. जो इसमें विश्वास करती है कि यह उसके जीवन का सच है। इससे इतर वह सोच भी नहीं सकती। जिस प्रकार से समाज के सरोकारों से वह कटी हुई है, उसे रोज का अखबार तक हासिल नहीं है, जिससे अपने ऊबाउपन जीवन से दो क्षण निकालकर बाहर की दुनिया में क्या कुछ घटित हो रहा है, उससे जुड़ने का मौका मिल सके। ऐसी स्थिति में एक आम महिला से अपने अस्तित्व के प्रति चिंतित होकर सोचते, उसके लिए संघर्ष करने अथवा ऊबाठ जीवन से उबरने हेतु जीवन में कुछ परिवर्तन लाने की
उम्मीद ही नहीं बचती।
(iv) ‘कड़बक’ कविता का भावार्थ लिखें।
उत्तर- गुणवान मुहम्मद कवि के एक ही नेत्र था किन्तु फिर भी
उनकी कवि-वाणी में यह प्रभाव था कि जिसने भी सुनी वही विमुग्ध हो गया। जिस प्रकार विधाता ने संसार में सदोष, किन्तु प्रभायुक्त चन्द्रमा को बनाया है, उसी प्रकार जायसी जी की कीर्ति उज्ज्वल थी किन्तु उनमें अंग-भंग दोष था। जायसी जी समदर्शी थे क्योंकि उन्होंने संसार को सदैव एक ही आँख से देखा उनका वह नेत्र अन्य मनुष्यों के नेत्रों से उसी प्रकार अपेक्षाकृत तेज युक्त था। जिस प्रकार कि तारागण के बीच में उदित हुआ शुक्रतारा। जब तक आम्र फल में डाम काला धब्बा (कोइलिया) नहीं होता तबतक वह मधुर सौरभ से सुवासित नहीं होता। समुद्र का पानी खारयुक्त होने के कारण ही वह अगाध और अपार है। सारे सुमेरु पर्वत के स्वर्णमय होने का एकमात्र यही कारण है कि वह शिव त्रिशुल द्वारा नष्ट किया गया, जिसके स्पर्श से वह सोने का हो गया। जब तक घरिया अर्थात् सोना गलाने के पात्र में कच्चा सोना गलाया नहीं जाता जबतक वह स्वर्ण कला से युक्त अर्थात् चमकदार नहीं होता। जायसी अपने संबंध में गर्व से लिखते हुए कहते है कि वे एक नेत्र के रहते हुए भी दर्पण के समान निर्मल और उज्ज्वल भाव वाले हैं। समस्त रूपवान व्यक्ति उनका पैर पकड़कर अधिक उत्साह से उनके मुख की ओर देखा करते हैं। यानि उन्हें नमन करते हैं।
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‘मुहम्मद जायसी’ कहते हैं कि मैंने इस कथा को जोड़कर सुनाया है और जिसने भी इसे सुना उसे प्रेम की पीड़ा प्राप्त हो गयी। इस कविता को मैंने रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है और गाड़ी प्रीती को आँसुओं से भिगो-भिंगोकर गीली किया है। मैंने यह विचार करके निर्माण किया है कि यह शायद मेरे मरने के बाद संसार में मेरी यादगार के रूप में रहे। वह राजा रत्नसेन अब कहाँ? कहाँ है वह सुआ जिसने राजा रत्नसेन के मन में ऐसी बुद्धि उत्पन्न की? कहाँ है सुलतान अलाउद्दीन और कहाँ है वह राघव चेतन जिसने अलाउद्दीन के सामने पद्मावती का रूप वर्णन किया। कहाँ है वह लावण्यवती ललना रानी पद्मावती कोई भी इस संसार में नहीं रहा, केवल उनकी कहानी बाकी बची है। धन्य वही है जिसकी कीर्ति और प्रतिष्ठा स्थिर है। पुष्प के रूप में उसका शरीर भले हो नष्ट हो जाए परन्तु उसकी कीर्ति रूपी सुगन्ध नष्ट नहीं होती। संसार में ऐसे कितने हैं जिन्होंने अपनी कीर्ति बेची न हो और ऐसे कितने हैं जिन्होंने कोर्ति मोल
न ली हो ? जो इस कहानी को पढ़ेगा दो शब्दों में हमें याद करेगा।
(v) पठित पदों के आधार पर तुलसी की भक्ति भावना का परिचय दीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांशों में कवि तुलसीदास ने अपनी दीनता तथा दरिद्रता से मुक्ति पाने के लिए माँ सीता के माध्यम से प्रभु श्रीराम के चरणों में विनय से युक्त प्रार्थना प्रस्तुत करते हैं। वे स्वयं को प्रभु का दास कहते हैं। नाम लै भरै उदर द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि श्रीराम के नाम जप ही उनके लिए सब कुछ है। नाम-जप द्वारा उनकी लौकिक भूख भी मिट जाती है। संत तुलसीदास में अपने को अनाथ कहते हुए कहते हैं कि मेरी व्यथा गरीबी की चिंता श्रीराम के सिवा दूसरा कौन बुझेगा ? श्रीराम हो एकमात्र कृपालु हैं जो मेरी बिगड़ी बात बनाएँगे। माँ सीता से तुलसीदासजी प्रार्थना करते हैं कि हे माँ आप मुझे अपने वचन द्वारा सहायता कीजिए यानि आर्शीवाद दीजिए कि मैं भवसागर पार करानेवाले श्रीराम का गुणगान सदैव करता रहूँ।
दूसरे पद्यांश में कवि अत्यंत हा भावुक होकर प्रभु से विनती करता है कि हे प्रभु आपके सिवा मेरा दूसरा कौन है जो मेरी सुधि लेगा। मैं तो जनम-जनम का आपकी भक्ति का भूखा हूँ। मैं तो दीन-होन दरिद्र हूँ। मेरी दयनीय अवस्था पर करुणा कीजिए ताकि आपकी भक्ति में सदैव तल्लीन रह सकूँ।
(vi) ‘तुमुल कोलाहल कलह में कविता का केन्द्रीय भाव स्पष्ट करें।
उत्तर प्रस्तुत कविता ‘तुमुल कोलाहल कलह में शीर्षक कविता – आधुनिक काल के सर्वश्रेष्ठ कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा विरचित है। प्रस्तुत कविता में कवि ने जीवन रहस्य को सरल और सांकेतिक भाषा में सहय ही अभिव्यक्त किया है।
कवि कहना चाहता है कि रे मन, इस तूफानी रणक्षेत्र जैसे कोलाहलपूर्ण
जीवन में मैं हृदय की आवाज के समान हूँ। कवि के अनुसार भोषण
कोलाहल कलह विज्ञान है तथा शान्त हृदय के भीतर छिपी हुई निजी
बात आशा है।
कवि कहता है कि जब नित्य चंचल रहनेवाली चेतना (जीवन के कार्य-व्यापार से) विकल होकर नींद के पल खोजती है और थककर अचेतन-सी होने लगती है, उस समय में नींद के लिए विकल शरीर को मादक और स्पर्शी सुख मलयानिल के मंद झोंके के रूप में आनन्द के रस की बरसात करता हूँ।
कवि के अनुसार जब मन चिर-विवाद में विलीन है, व्यथा का अन्धकार घना बना हुआ है, तब में उसके लिए उषा सौ ज्योति रेखा हूँ, पुष्प के समान खिला हुआ प्रातःकाल हूँ अर्थात् कवि का दुःख में भी सुख की अरुण किरणे फुटती दिख पड़ती है।
Answer Key: BSEB 10th English Official Model Paper 2021 Exam PDF
कवि के अनुसार जोवन मरुभूमि की धधकती ज्वाला के समान है जहाँ चातकी जल के कण प्राप्ति हेतु तरसती है। इस दुर्गम विषम और ज्वालामय जीवन में मैं (श्रद्धा) मरुस्थल की वर्षा के समान परम सुख का स्वाद चखानेवाली हूँ। अर्थात् आशा की प्राप्ति से जीवन में मधुरस
की वर्षा होने लगती है। कवि को अभागा मानव जीवन पवन की परिधि में सिर झुकाये हुए रुका हुआ-सा प्रतीत होता है। इस प्रकार जिनका सम्पूर्ण जीवन झुलस रहा हो ऐसे दुःख-दग्ध लोगों को आशा वसन्त को रात के समान जीवन को सरस बनाकर फूल सा खिला देती है।
कवि अनुभव करता है कि जीवन आँसुओं का सरोवर है, उसमें निराशारूपी बादलों की छाया पड़ रही है। उस हाहाकारी सरोवर में आशा ऐसा सजल कमल है जिस पर भौरे मँडराते हैं जो मकरन्द से परिपूर्ण है। आशा एक ऐसा चमत्कार है जिससे स्वप्न भी सत्य हो जाता है।
संक्षेपण करें
जब आप वास्तव में सीख रहे होते हैं तब पूरा जीवन हो सीखते है। तब आपके लिए कोई गुरु ही नहीं रह जाता है। प्रत्येक वस्तु आपको सिखाती है एक सूखी पत्ती, एक उड़ती हुई चिड़िया, धनी, गरीब, किसी की मुस्कराहट, किसी का अधकार आप हर वस्तु से सीखते हैं, कोई दार्शनिक नहीं, कोई गुरु नहीं, कोई मार्गदर्शक भी नहीं। तब आपका जीवन स्वयं आपका गुरु है और आप सतत् सोखते रहते हैं।
उत्तर- शीर्षक- आपका जीवन सभी जागरूक व्यक्ति जीवन भर सौखते रहता है। कोई एक नहीं पूरी प्रकृति की प्रत्येक घटना उसका गुरु है, स्वयं उसका जीवन भी
एक गुरु है।
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